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पर्यावरण की रक्षा, दुनिया की सुरक्षा

  • sangyanmcu
  • Jun 5, 2021
  • 3 min read

प्रयागराज के संगम तट पर मनुष्य ही क्या, हजारों की संख्या में आने वाले साइबेरियन पक्षियों भी मानों गंगा की गोद में चले आते हैं



सतीश पाण्डेय . प्रयागराज mobile#8173023450 @satish3398


जीवन पर्यावरण से ही संभव है। समस्त मनुष्य, जीव- जंतु, प्राकृतिक, वनस्पतियों, पेड़- पौधे, जलवायु, मौसम सब पर्यावरण के अंतर्गत ही निहित है। पर्यावरण न सिर्फ जलवायु में संतुलन बनाए रखने का काम करता है, बल्कि जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँं उपलब्ध करवाता है। मानव और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। अगर हमारी जलवायु में थोड़ा सा भी परिवर्तन होता है तो इसका सीधा असर हमारे परिवेश के साथ-साथ शरीर पर दिखने लगता है। अगर ठंड ज्यादा पड़ती है तो हमें सर्दी हो जाती है। लेकिन अगर गर्मी ज्यादा पड़ती है तो हम सहन नहीं कर पाते हैं।


पर्यावरण वह प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी पर बढ़ने, पोषण और नष्ट करने में सहायता करती है। प्राकृतिक पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में एक महान भूमिका निभाता है और यह मनुष्य, जानवरों और अन्य जीवित चीजों को विकसित करने में मदद करता है। मनुष्य अपनी कुछ बुरी आदतों और गतिविधियों से अपने पर्यावरण को प्रभावित कर रहे हैं।


प्रयागराज के संगम तट पर लगने वाले माघ मेले में देश-विदेश से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के साथ, सात समन्दर पार कर साइबेरियन पक्षियों के समूह भी संगम तट पर पहुंच जाते हैं। संगम तट पर हजारों की संख्या में आने वाले साइबेरियन पक्षियों से जहां संगम का प्राकृतिक सौन्दर्य और भी निखर जाता है, तो वहीं संगम पर आने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही देशी-विदेशी पर्यटक भी इन प्रवासी पक्षियों के कलरव को देखकर आनन्द की अनुभूति करते हैं।


लेकिन पिछले कुछ वर्षों से प्रदूषण की मार के चलते इन विदेशी मेहमानों की तादाद बेहद कम हो गई है। इसे लेकर पर्यावरण के साथ पर्यटकों में भी काफी निराशा देखने को मिला है। ग्रामीण क्षेत्रों में बाग-बगीचे, पेड़-पौधे, नदी-तालाब अधिक देखने को मिलते हैं, जिससे गांव का पर्यावरण शुद्ध व साफ सुथरा रहता है। लेकिन कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति तालाबों पर कुछ लोगों द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर भवन निर्माण जैसे अतिक्रमण फैलाते हैं, तालाब के जल को दूषित करते हैं।


ऐसा ही हाल कुछ हमारे गांव में तालाब पर अतिक्रमण से जुड़ा था। लेकिन गांव के ही कुछ लोगों द्वारा तालाब सफाई अभियान चलाया गया जिससे अब तालाबों का सौंदर्यीकरण किया गया। तालाब के चारों तरफ पेड़-पौधे लगाए गए। बैठने के लिए चबूतरे का निर्माण किया गया है। अब गांव के सभी लोग सुबह-शाम तालाब पर टहलते हैं और ताजी हवा का आनंद लेते हैं। हमारे गांव से कुछ दूर पहाड़ों के बीच में एक बड़ा सा बांध का निर्माण कराया गया है जिसमें वर्षा का पानी इकट्ठा होता है फिर उसी पानी से कृषि कार्य किए जाते हैं व पशु-पक्षी भी अपनी प्यास बुझाते हैं।


वर्षा का जल इकट्ठा होने से आसपास के क्षेत्र में पानी का स्तर काफी ऊपर रहता है। पानी की परेशानी नहीं होती। उसी बांध के पास एक झरना है जिसे सरकार द्वारा पर्यटक स्थल घोषित किया गया है। झरने में नहाने और पिकनिक मनाने के लिए लोग अपने पूरे परिवार के साथ आते हैं और प्रकृति का आनंद उठाते है।

संसार की रचना कुछ नियमों के आधार पर हुई है। उन नियमों को तोड़ने वाले आप या फिर हम कोई नही होते। और जो नियम तोड़ता है वो समस्त विश्व को ले डूबता है। नियम तोड़ने वाले को इसका भुगतान करना पड़ता है। ये बात हमें ध्यान रखनी चाहिए। पर्यावरण भी अब हमसे प्रत्यक्ष रूप से बोल रहा होगा कि इस प्रकार की गतिविधियां कम करो। पर्यावरण की ना सुनने की कीमत हमें ना चुकानी पड़े इसका प्रयास करे। स्वयं जागरूक रहे व दूसरों को भी जागरूक करे। जागरुकता से जब पर्यावरण बचाया जा सकता है तो इससे कभी पीछे न हटें। मुरझाए पर्यावरण को मुस्कुराने की अदा दें। स्वयं मुस्कुराए साथ मंे पर्यावरण को भी मुस्कुराने का वादा दे।


 
 
 

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