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पृथ्वी का चांद बनारस !

  • sangyanmcu
  • Jun 5, 2021
  • 4 min read

गलियां बीच काशी है कि काशी बीच गलियां, कि काशी ही गली है कि गलियों की ही काशी है



स्नेहा तिवारी . वाराणसी #8770658477 @snehaTi20827427


वाराणसी शब्द ‘वरुणा' ओर ‘असी' दो नदि वाचक शब्द के योग से बना है। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार और ‘वरुणा' और ‘असी’ नाम की नदियों के बीच में बसने के कारण इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं : बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः मंदिरों का शहर, भारत की धार्मिक राजधानी, भगवान शिव की नगरी, दीपों का शहर, ज्ञान नगरी आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। इस शहर की हर एक चीज अनोखी है। यहां की गालियां, घाट, दुकानें, खानपान, लोग या फिर कह सकते है कि काशी ही अनोखी है। बनारसी पान खाने के बाद बनारस से जाने का मन नहीं करेगा, यहां के पान में जादुई चीजे हैं।


बनारस में कहा जाता है कि जितनी सड़के हैं उससे सौ गुनी अधिक गलियां है यदि आप बनारस की सड़कों को देखेंगे तो अन्याय होगा क्योंकि असली जीवन तो बनारस की गलियों में ही है। बनारस को 2 नामों से पुकारा जाता है पहला पक्का महाल और दूसरा है भीतरी महाल। काशी खंड के अनुसार विश्वनाथ खंड केदार खंड की तरह वर्तमान में दो वर्तमान में दो भागों में बसा है लोगों ने केवल बाहरी रूप ही देखा होगा अगर उसका पक्का रूप देखना है तो वहां की गलियों को देखना होगा जिसे पक्का महाल भी आप कह सकते है।


पक्की सड़के तो वहां अभी ही निर्मित हुई है परंतु वहां की कच्ची सड़के आप की कसरत करवा सकती हैं। और वहां की गलियों से यदि आप कोई पता ढूंढ रहे हो तो आपको ज्योमेट्री की शिक्षा लेनी पड़ेगी क्योंकि वहां की गलियों की जानकारी वहां के रहने वाले लोगों को भी कभी-कभी असमंजस में डाल देती है।


इसलिए किसी जानकार को ही साथ रखें अपने साथ नहीं तो आप उन बनारस की गली में कहीं खो जाएंगे। बनारस में कुल 50 से 55 गलियां है जिनमें से कुछ का नाम कुछ इस प्रकार है विश्वनाथ गली, खोवा गली, कचौड़ी गली, दाल मंडी गली ऐसी ही कुछ 55 गलियां हैं।


स्मार्ट सिटी – काशी

बनारस को देश के स्मार्ट शहरों में शुमार करने की योजनाएं पूरे रफ्तार से चल रही हैं। इस शहर को यूपी का सबसे स्मार्ट शहर बनाने की सरकार की मंशा है। अधिकारियों की मानें तो दिसंबर 2021 तक इन योजनाओं का काम पूरा भी हो जाएगा। 2022 में शहरवासियों को इनकी सौगात मिलेगी। दर्जनभर से ज्यादा संचालित इन योजनाओं पर 1000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। काम को रफ्तार देने और वस्तु स्थिति को समझने के लिए समय-समय पर आला अफसरों की फौज मौके पर पहुंच रही है। वहीं लखनऊ से कार्य योजनाओं की मॉनिटरिंग भी की जा रही है


नमामि गंगे क्लीन इंडिया मिशन

मां गंगा का तट स्वच्छ रहे और श्रद्धालु गंगा स्नान करके घाटों पर गंदगी करके न लौटें। बल्कि गंगा से उनका आत्मीय रिश्ता स्थापित हो और वह स्वच्छता में बढ़चढ़ कर योगदान दें। इसके मद्देनजर नमामि गंगे स्वच्छ भारत मिशन लगातार अभियान चला रहा है। गंगा रहेंगी तभी पृथ्वी पर मानव सहित समस्त जीव सुरक्षित रहेंगे अगर गंगा प्रदूषित होकर नाला के स्वरूप में तब्दील हो जाएंगी तो पृथ्वी से समस्त जीवों का अंत होने लगेगा।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वाराणसी शहर की वायु गुणवत्ता की हालत बेहद खराब है। शहर के 15 प्रमुख स्टेशनों की रिपोर्ट के अनुसार बौलिया का इलाका सबसे अधिक प्रदूषित रहता है। वहीं, शहर का फेफड़ा कहे जाने वाले इलाके बीएचयू, सारनाथ और कैंटोमेंट की भी हालत खराब रही। बौलिया का एयर क्वालिटी इंडेक्स 441 दर्ज किया गया तो कैंट स्टेशन का 427। वहीं, बीएचयू का एक्यूआई 413 और सारनाथ का 374 रहा। बीएचयू के वैज्ञानिक प्रो. बीडी त्रिपाठी ने बताया कि है की पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों की मात्रा हवा में बढ़ने के कारण हवा की गुणवत्ता खराब हुई है। कुछ इस तरीके से बनारस में वायु का प्रदूषण ज्यादा है क्योंकि वहां की जनसंख्या ज्यादा है इस वजह से वहां प्रदूषण ज्यादा होता है।


बनारस के मनोहर घाट की कहानी

छठ पर्व के वक्त गंगा नदी का दलदल

बनारस अपने आप में एक अद्भुत जगह है यहां की विशेषता बनारस को अलग बनाती। यहां पर करीब 100 से ज्यादा घाट हैं। सभी घाटों की अपनी अलग-अलग कहानी है। मणिकर्णिका घाट पर हर वक्त लाशें जलती रहती हैं, ऐसे ही अनेक घाट है जो अपनी-अपनी कहानी लिए बैठे है।


मैं बनारस की ही रहने वाली हूं तो मैं गंगा नदी के दलदल को कैसे भूल सकती हूं। 2019 की बात है, छठ वाले दिन जिस दिन शाम को अर्घ दी जाती है उस दिन सभी लोग घाट पर घूमने तो आते ही हैं लेकिन अगर किसी के घर में छठ पूजा नहीं मनाई जाती तो भी लोग गंगा घाट पर घूमने आते हैं। और घाट एक मेले की तरह दिखता है। पैर रखने तक की जगह नहीं होती। मैं भले ही बनारस की हूं लेकिन गंगा घाट को उतना करीब से कभी नहीं देखा था जितना मैंने छठ वाले दिन देखा। सबकी तरह में भी छठ घाट पर गई मुझे अंदाजा भी नहीं था कि इतना खतरनाक दलदल भी होता है पानी से तो मुझे हमेशा से डर रहा है, लेकिन उस दिन के बाद से तो मैं दलदल से भी डरने लगी। वह कुछ ऐसा दलदल था कि मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं पानी में खड़ी हूं या दलदल में क्योंकि गंगा नदी का पानी इतने उफान पर था कि एक दलदल का रूप ले लिया था। वहां का दृश्य कुछ ऐसा हो गया था कि जितने भी बच्चे थे सब के सब उस दलदल से डर रहे थे। सबको डर था कि वह दलदल फूटा और वह उसके अंदर गए। बहुत ही अनोखा दृश्य था वो जिसने मेरी बेचैनी को बढ़ा दिया। मैं वहां से निकलने का रास्ता ढ़ूंढ़ने लगी। मैंने अपने घर के लोगों को मजबूर कर दिया वहां से निकलने के लिए, और उस दिन से आज तक मेरे मन में उस दलदल का भय है। प्राकृतिक और सांस्कृतिक तौर पर बनारस एक बहुत ही अदभुद शहर है।


 
 
 

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