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।। वनानि नः प्रजहितानि, दशपुत्रसमो द्रुमः ।।

  • sangyanmcu
  • Jun 5, 2021
  • 2 min read

धरती का अस्तित्व हमारी वजह से नहीं है, बल्कि हमारा अस्तित्व धरती की वजह से है।


ऋग्वेद के अनुसार, "वनानि नः प्रजहितानि, दशपुत्रसमो द्रुम:" अर्थात् ‘वनों को विनाश से बचाने के लिए वेद में एक वृक्ष को दस पुत्रों के समान कहा गया है



करुणा कुमारी . आरा (बिहार) mobile#7667135596 @durganews

प र्यावरण, यह दो शब्दों से मिलकर बना है, "परि' और "आवरण'। जिसमें "परि' का अर्थ है- "हमारे आसपास'। और "आवरण" का अर्थ है- "चारों तरफ से घेरना'। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की सम्मिलित इकाई है, जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। धरती का अस्तित्व हमारी वजह से नहीं है, बल्कि हमारा अस्तित्व धरती की वजह से है।


21वीं सदी का पर्यावरण

इस 21वीं सदी में जिस तरह शुद्ध ऑक्सीजन की कमी हुई है, इससे साफ पता चल रहा है कि किस तरह से हम मानव से प्राकृति नाराज होती जा रही है। वैदिक संस्कृति का प्रकृति से अटूट सम्बन्ध है। वैदिक संस्कृति में पृथ्वी और प्रकृति से प्रेम करना सिखाया गया है। 21वीं सदी में औद्योगिक विकास के युग में विकासशील और विकसित देशों में हजारों-लाखों फैक्टरियां दिन-रात चलती रहती हैं। जिनसे निकलने वाला धुआं और विषैले पदार्थ हमारे पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित करते जा रहे हैं। प्रदूषण की वजह से ही सूर्य की खतरनाक किरणों से रक्षा करने वाली ओज़ोन परत में छेद बढ़ता ही जा रहा है। धरती का तापमान इतना बढ़ गया है कि मार्च-अप्रैल के महीने में ही गर्मी लगनी शुरू हो जाती है। अभी जून का महीना चल रहा है और तुफान के साथ गर्मी और बरसात दोनों झेलने पड़ रहे हैं।


शुद्ध पर्यावरण का मतलब है गांव

गांव का नाम आते ही दिमाग में "हरियाली' आती है। जहां बाग़-बगीचे होते हैं। जहां बड़े से पीपल के पेड़ के नीचे पंचायत होती है। हर घर के आगे फूलों की क्यारियां होती हैं। वहां के लोग पेड़ों से प्यार करते हैं। हर साल 60 से 70 पेड़ गांव के लोगों द्वारा लगाए जाते हैं। राज्य सरकार द्वारा भी "पौधा रोपण' का फंड पंचायत में आता है। नदियां साफ़ की जाती हैं।


पौधा रोपण से रोजगार

इस वैश्विक महामारी के दौरान बहुत सारे शिक्षित और अशिक्षित लोग बेरोजगार हो गए। खेती करने और पौधारोपण करने से इन लोगों को रोजगार मिल रहा है। बाढ़ आने वाले महीने में किसानों ने बाजरा की खेती छोड़ कर, एलोविरा की खेती करना शुरू कर दी है। क्योंकि 2 महीने बाढ़ के पानी में एलोविरा ख़राब नहीं होता है। कुछ लोग आम, अमरूद और पपीता की खेती कर पैसे कमा रहे हैं।


पौधे लगाने की अनूठी मुहिम

बिहार के आरा जिला के गांव सुन्दरपुर बरजा में एक अनूठी मुहीम चली है। जिस किसी के घर शिशु जन्म लेगा वो एक पौधा लगाएगा। अभी तक काफी पौधे लग चुके हंै और लोगों की पर्यावरण के प्रति यह अनोखी पहल पर्यावरण प्रेमियों और बुद्धिजीवियों के बीच तारीफें बटोंर रही है।


मेरे गांव के आंगन का वह पेड़

मेरे गांव के घर के आंगन में मेरी दादी द्वारा लगाया गया एक गागल निम्बू का पेड़ है। यह पेड़ तब लगा था, जब मेरे पापा का जन्म हुआ। इस खुशी में मेरी दादी ने एक पेड़ लगा दिया। मेरे पापा के साथ-साथ वह गागल निम्बू का पेड़ हरा-भरा है। इसे हर रोज देख कर दिल खुश हो जाता है। •


 
 
 

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