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बुंदेलखंड और बदलते पर्यावरण समीकरण

  • sangyanmcu
  • Jun 5, 2021
  • 4 min read

बुंदेलखंड में पिछले दो दशकों में 13 बार सूखा पड़ चुका है और भूमिगत जलस्तर गर्त में पहुंच चुका है



सत्यम सिंघई . सागर mobile#9770353886 @SatyamSinghai2


यदि व्यक्ति मृतशय्या पड़ा हो और सांसों के लिए तड़प रहा हो, उसके सामने एक तरफ हीरें हों और दूसरी तरफ सांसें हों और चयन का विकल्प मात्र एक हो, तो वह किसका चयन करेगा? यदि आप से इसका जबाव मांगा जाए तो लगभग सभी सांसों को ही चुनेंगे जो कि तर्कसंगत भी है।


परंतु यह वास्तविकता नहीं है। हमने देखा कि महामारी की दूसरी लहर में ना जानें कितने प्रभावितों ने ऑक्सीजन के अभाव में अपनी जिंदगी गंवा दी। दूसरी ओर सरकार चाहती है कि लगभग सवा दो लाख पेड़ों के जंगल को उसके गर्भ में छुपे हीरों के लिए काट दिया जाए। यह घटना है मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में स्थित बक्सवाहा (छतरपुर जिला) क्षेत्र की। दरअसल, प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता को देखते हुए 2000 से 2005 के बीच हीरों की खदानों की खोज के लिए सर्वे कराया गया। जिसमें बक्सवाहा के 382.131 हेक्टेयर क्षेत्र में 2.15 लाख वृक्षों के नीचे 3.42 करोड़ कैरेट हीरे के होने का अनुमान लगाया गया। पर्यावरण संबंधी आकलन के बाद राज्य सरकार ने मामला केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की आगे बढ़ा दिया, जहां से कारवाई का इंतजार है। इस मामले के प्रकाश में आते ही विभिन्न पर्यावरण कार्यकर्ता तथा स्थानीय युवा सरकार को चेताने का प्रयास कर रहे हैं।

बुंदेलखंड क्षेत्र शुरुआत से ही जंगलों के मामले में समृद्ध रहा है। परंतु प्रायद्वीपीय भारत के वृष्टि छाया क्षेत्र में अवस्थित होने के कारण यहां मानसून सीधे ना पहुंच कर कई रुकावटों के बाद पहुंचता है। जिसके कारण यहां की बहुत सी जमीन पथरीली वह बंजर हो चली है। लगातार बदलते जलवायु चक्र के कारण यहां के मानसून की अवधि में भी नकारात्मक परिवर्तन देखा जा सकता है। 2014 के आंकड़े के अनुसार यहां केवल 52 दिन मानसूनी वर्षा के थे। इसके बाद से ये लगातार घट रहे हैं।


बुंदेलखंड का सूखा प्रत्येक वर्ष जिम्मेदारों के लिए चिंता का सबब बना रहता है। यहां पिछले दो दशकों में 13 बार सूखा पड़ चुका है। अत्यधिक वनों के कटाव व संसाधनों के दोहन से भूमिगत जलस्तर गर्त में पहुंच चुका है। यहां ग्रीष्मकाल में स्वच्छ जल अमृत के समान प्रतीत होता है।


बात की जाए स्थानीय लोगों की तो आज लगभग संपूर्ण क्षेत्र पर्यावरण पर प्रत्यक्ष रुप से निर्भर है, कारण है कृषि। बहुत सी आबादी कृषि से अपनी जीविकोपार्जन करती है। अस्थिर मानसून ने यहां कृषि को सही मायनों में जुआ बना दिया है। इसका प्रमाण बुंदेलखंड के किसानों की आत्महत्याओं आंकड़ों को देखकर जुटाया जा सकता है। शहरी पलायन भी यहां एक बड़ी समस्या है, जिसकी वजह कृषि का ह्रास ही है।


अगर बुंदेलखंड क्षेत्र के जलस्रोतों की बात की जाए तो उनके हालात भी संतोषजनक नहीं है। जिनमें कुछ भ्रष्टाचार की, तो कुछ मानवीय लालसाओं की भेंट चढ़ गए हैं। नदियों में अवैध खनन के चलते उनकी स्थिति दयनीय हो चली है। तालाबों, नदियों में अवैध खुदाई और अतिक्रमण का सबसे ज्यादा असर भूमिगत जलस्तर पर पड़ रहा है।


बनीं जल-सहेलियां: बुंदेली संस्कृति को बचाने के प्रयास लगातार जारी है। करीब 20 लाख की आबादी वाले सूखे प्रदेश बुंदेलखंड की ज्यादातर नदियां, तालाब और कुंए सूख गए हैं। इस समस्या से निपटने के लिए करीब 600 जल-सहेलियों (वाटर वीमेन) के साथ मिलकर काम कर रही हैं।

बुंदेलखंड के प्रमुख जिलों की बात की जाए तो, सागर की लाखा बंजारा झील 30 सालों में 2.5 एकड़ कम हो गई। छतरपुर शहर के 12 तालाबों में से 4 का अब नामो-निशान नहीं है, 8 तालाब अतिक्रमण की चपेट में हैं। टीकमगढ़ की लाइफ लाइन कहे जाने वाले वृंदावन और महेंद्र सागर तालाब अब लोगों की प्यास नहीं बुझा पा रहे हैं। दमोह में दीवानजी की तैयारी भी सिकुड़ गई है। सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में तालाबों की दुर्दशा का मुख्य कारण अतिक्रमण और अवैध उत्खनन हैं।


इन सबके बीच बुंदेली संस्कृति को बचाने के प्रयास लगातार जारी है। करीब 20 लाख की आबादी वाले सूखे प्रदेश बुंदेलखंड की ज्यादातर नदियां, तालाब और कुंए सूख गए हैं। इस समस्या से निपटने के लिए करीब 600 जल सहेलियों (वाटर वीमेन) के साथ मिलकर काम कर रही हैं। ऐसी ही एक जल सहेली बवीता राजपूत छतरपुर जिले के अंगरोठा गांव से आती हैं। उन्होंने अप्रैल 2019 में जन-जन जोड़ो अभियान के माध्यम से सूखे से निपटने के लिए 100 मीटर की नहर का निर्माण किया। ऐसे ही कई प्रयास लगातार जारी हैं।


सिर्फ यहीं नहीं भारत तथा विश्व के कई क्षेत्रों में ऐसे ही भयावह परिणाम देखने को मिल रहें हैं। यदि वर्ल्ड बैंक की इनेबलिंग द बिजनेस ऑफ एग्रीकल्चर (EBA) रिपोर्ट 2019 को देखा जाए तो भारत का कृषि के अवसर व साधनों के मामलें में 101 देशों में 49वां स्थान है। साथ ही शोध का मानना है कि भारत में लगातार कृषि हेतु अनुकूल परिस्थितियों का ह्रास हो रहा है। जबकि आज भी भारत की दो तिहाई आबादी कृषि पर निर्भर है। अमेरिकन जियोलॉजिकल यूनियन की शोध के मुताबिक लगातार जलवायु परिवर्तन के पृथ्वी के अक्ष में परिवर्तन हो रहा है। जो एक बड़े खतरे की ओर इशारा है। इन सब परिणामों के बाद भी यदि मानव नहीं सुधरा तो शायद वह पृथ्वी पर रहने के योग्य नहीं है।


 
 
 

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