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लॉकडाउन प्रकृति पर एक वरदान

  • sangyanmcu
  • Jun 5, 2021
  • 3 min read

लॉकडाउन से पर्यावरण के साथ देश-प्रदेश की तमाम नदियां साफ हो गईं, लेकिन बांदा से गुजरी केन नदी पर कोई फर्क नहीं पड़ा



अंशिका द्विवेदी . बांदा mobile#6388583983 @Anshika51883840


कोरोना वायरस ने भले ही इंसानों के लिए डर का आलम बना रखा है, लेकिन प्रकृति के लिए यह किसी मरहम और राहत की पुड़िया से कम नहीं है। सड़क पर गाड़ियों की कतारें, धुआं उगलती फैक्ट्रियां और धूल बिखेरते निर्माण हमारे शहरों के विकास की पहचान बन गए थे। बड़े पैमाने पर होने वाली गतिविधियों ने हमारे शहरों की हवा को कितना जहरीला और नदियों को कितना प्रदूषित किया, यह हम सब जानते हैं। इनमें जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तो मुख्य रूप से शामिल हैं। माहौल ऐसा बना है कि जो इलाके पहले वायु प्रदूषण के सबसे बड़े अड्डे थे वे सभी अब धीरे-धीरे व्यापक ग्रीन जोन में तब्दील हो रहे हैं। वहां वनस्पतियों ने अपनी जगह बनाने लगी है इन दिनों कार्बन उत्सर्जन कई तरह के प्रदूषण को अपने आप कम होते देखा जा रहा है, जिससे हवा साफ है। लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का मौका मिल रहा है। चीन की दीवार माउंट एवरेस्ट और हिमालय की चोटियां काफी दूर से साफ-साफ देख पा रहे हैं और वैसे कई बदलाव पर्यावरण पर देखे जा रहे हैं।


अगर आंकड़ों की बात की जाए तो मार्च से अब तक प्रतिदिन होने वाले कार्बन उत्सर्जन में लगभग 17% प्रतिशत तक की कमी आई है। सभी तरह के प्रदूषण में गिरावट हुई है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आई है। इसके अलावा खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी गंगा व यमुना समेत कई नदियों की पानी की गुणवत्ता में व्यापक रूप से सुधार हुआ है, नदियों साफ करने के लिए कई मुहिम चलाई गई थी यहां तक गंगा की सफाई के लिए अलग मंत्रालय का गठन भी किया गया था सबसे बड़ा गंगा नदी सफाई प्रोजेक्ट नमामि गंगे भी चलाया जा रहा है। लेकिन सारे प्रयास असफल साबित हो रहे थे लेकिन लॉकडाउन के चलते जल प्रदूषण में कमी आई है और नदी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। प्रकृति और वन्य जीवन ने खुद को फिर से पुनर्जीवित और स्वच्छ किया है। भारत में हर साल लाखों लोग वायु जलीय या भूमि प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण मारे जाते हैं। वहीं, अगर बात करें दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की तो यह देश का सबसे प्रदूषित शहर माना जाता रहा है। साल 2018 और 2019 के दौरान पीएम 2.5 का स्तर तीन सौ से ऊपर था। लेकिन, लॉकडाउन के बाद यह स्तर गिरकर 101 पर पहुंच गया। यही हाल देश के अन्य हिस्सों का भी है, जहां वायु प्रदूषण में भारी कमी आई है।


लॉकडाउन से पर्यावरण के साथ देश-प्रदेश की तमाम नदियां साफ हो गईं, लेकिन शहर से गुजरी केन नदी पर कोई फर्क नहीं पड़ा। शहर के नालों का गंदा पानी सीधे नदी में जा रहा है। नतीजतन, केन का पानी काला नजर आ रहा है। कूड़ा-करकट भी तैर रहा है। मध्य प्रदेश की ओर से आई केन नदी जिले के चिल्ला गांव स्थित यमुना में मिलती है। बांदा शहर सहित सैकड़ों गांवों के लिए केन नदी का बड़ा महत्व है। शहर में निम्नी नाला समेत कई बड़े नालों का गंदा पानी सीधे नदी में पहुंच रहा प्रदूषण का आलम यह है कि रेल और सड़क पुल के पास केन नदी का पानी काला नजर आने लगा है। कचरा फेंकने की प्रवृत्ति पर भी लगाम नहीं लगी। लोग बेहिचक नदी में कूड़ा फेंक रहे हैं। प्रदूषण के चलते नदी का पानी सीधे पीने योग्य नहीं है। केन पुल के नजदीक दो इंटेकवेल हैं जिनसे बांदा शहर को जलापूर्ति की जाती है।


मुझे लगता है पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए निजी और सरकारी कंपनियों को उत्पादन के लिए इको फ्रेंडली तकनीकी को अपनाना चाहिए। साथ ही साथ सरकारों को पर्यावरणीय चुनौती को ध्यान में रखते हुए विकासात्मक नीतियां बनाने की भी जरूरत है। यह भी एक जरूरी कदम है हम विश्व स्तर पर और सामूहिक रूप से कार्य करने की दिशा में कदम बढ़ाए।


 
 
 

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