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औरों की खुशियों की फिक्र में खुद को भूल जाती है माँ, आंसुओं और खुशियों को लुटा देती हैं मां

  • sangyanmcu
  • May 20, 2021
  • 2 min read

अपनी हर चोट छुपाकर ठीक हूं मैं, कह जाती है मां, अपने बच्चों के लिए कितना कुछ सह जाती है मेरी मां।



सुष्मिता राज

mobile#9415288272 @Sushmit61818409


हर रिश्ते की बनावट देखी है ,

कच्चे रंगों की सजावट देखी है ,

बचपन से देखती हूं अपनी मां को मैं,

न उसके चेहरे पर थकावट देखी,

न ममता में उसकी मिलावट देखी है।

मां एक ऐसे एहसास का नाम है जो बच्चों के लिए कभी बदलता नहीं है।


आज मैं अपनी मां के बारे में कुछ लिखना चाहती हूं, मेरी मां जो हर रोज सुबह सबसे पहले उठकर घर में शान्ति बनाए रखने के लिए पूजा करती हैं। सबके लिए नाश्ता बनती हैं और बनाकर सबको खिलाने के बाद खुद खाती है, ऐसी है मेरी मां।


सबके लिए भोजन बनाने से लेकर घर गृहस्थी के हर काम को बखूबी संभालती हैं। बिना किसी तन्ख्वाह के हर दिन सबके लिए बिना थके चलती है, ऐसी है मेरी माँं।


सभी के खुशियों का ख्याल रखते-रखते खुद के बारे में अक्सर भूल जाती है मां, कुछ बुरा लगने पर आंखों में आशू लिए सबके सामने मुस्कुरा देती है मेरी मां। सभी अपने-अपने ड्यूटी से परेशान अपने काम के घन्टे गिनवाते हैं तब 24 घन्टे काम करने वाली अपने थकान भुला देती है मेरी माँं। मेरी गलतियों पर अक्सर मार और डांट देती है वो, चुपके से जा के देखूं तो मेरे लिए अकेले में आशू बहाती है मेरी मां।


अपनी हर चोट छुपाकर ठीक हूं मैं, कह जाती है मां, अपने बच्चों के लिए कितना कुछ सह जाती है मेरी मां।

खुशियों से भर जाता है घर मेरा, जब मां के मुस्कुराते हुए चहरे से होता है सबेरा। सब कहते है किसी डॉक्टर या कलेक्टर के तरह बनने को, मैं कहती हूं अपने मां की तरह बन जाऊं तो क्या कहना है । •


(लेखिका उप्र से हैं और उन्होंने दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया है।)




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