मां की पहली झप्पी
- sangyanmcu
- May 20, 2021
- 2 min read
मुझे पापा की डांट से बहुत डर लगता था, लेकिन अब मेरे पापा मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं और मेरी मां मेरी गुरू

कुणाल नारोलिया
मेरी माता का नाम रेखा नारोलिया है। मेरी माँ मूल रूप से भारत की गुलाबी नगरी ‘जयपुर’ की रहने वाली है। मेरी मां पेशे से एक ब्यूटीशियन हैं। जब वे 16 वर्ष की थीं, तभी से उन्होंने पार्लर में महिलाओं के सौन्दर्य को निखारने का कार्य सीखना शुरू कर दिया था।
स्वभाव के मामले में, मैं और मेरी मां हम दोनों एक जैसे हैं। हम दोनों ही अंतर्मुखी स्वभाव (इन्ट्रोवर्ट) के हैंं। मेरी मां स्वाभव से बहुत शांत और ठंडे दिमाग से सोचने वाली महिला हैं। मेरी मां मृदुभाषी हैं। वह सभी से आदर और प्रेम भाव से बात करती हैं। हालांकि, मैं इस मामले में उनसे बहुत पीछे हूं।
मेरे जीवन की सबसे अनमोल यादों में से एक है, जब मैंने मेरी मां को पहली बार देखा था। उन मासूम आंखों से देखा हुआ वो चेहरा हमेशा-हमेशा के लिए मेरे दिल में बस गया।
मुझे याद है... मैं अपनी नानी के घर की छत पर माचिस से खेल रहा था। वहां बहुत सी लकड़ियों का ढेर और भूसा रखा था। मैं तिल्लियों को जला-जला कर फेंक रहा था। मुझे उसमें बहुत मज़ा आ रहा था। जब तिल्लियां खत्म हो गई तो मैं घर में जाकर पलंग पर लेट गया। थोड़ी ही देर में पड़ोसियों ने नानी को घर आकर बताया, आपकी छत पर तो आग लग गई है। यह सुनते ही मेरी मां और नानी तुरंत बालटियों में पानी भर-भर के छत पर जाकर आग बुझाने लगी...
यह सब देख मैं चुपचाप चादर ओढ़कर सोने की एक्टिंग करने लगा, फिर मैंने अपनी दाहिंनी कोह्नी को उपर-नीचे करते हुए कहा-यस, यस, यस!! मुझे आज तक नहीं पता मैंने ऐसा क्यों कहा... पर हांयह पता है कि वो मेरी ज़िन्दगी का पहला यस था।
मैं बचपन से ही अपनी मां से दूर नहीं रह पाता था। शायद जब मैं चार वर्ष का था, तो मां मुझे पड़ोसियों के घर छोड़कर कहीं चली गई थी। मुझे उनकी बहुत याद आ रहीं थी और मैं चुपचाप वहां से रफू-चक्कर हो गया। मैंने अपनी साइकल उठाई और मां की तलाश में निकल गया। उस समय मैं पहली कक्षा में पढ़ता था। उनको ढूंढता हुए मैं एक किलोमीटर दूर निकल गया। उनको ढूंढने के चक्कर में, मैं खुद गुम हो गया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा... तभी मेरी कॉलोनी के एक अंकल ने मुझे पहचाना और वापस घर ले आए... तब तक मां घर लौट चुकी थीं। और मुझे घर पर ना पाकर रो रहीं थी। मेरे वहां पहुंचते ही उन्होंने मुझे कस के गले लगा लिया... वो मेरी ज़िन्दगी का पहली झप्पी थी और तभी मुझे पहली बार प्रेम का अहसास हुआ था। मैं जैसे-जैसे बड़ा हुआ मेरी शरारतंे भी बढ़ती गईं। मैं पढ़ाई में बहुत कमजोर था। मैं अपने स्कूल का होमवर्क मां से ही लिखवाया करता था। स्कूल में भी हमेशा मैं मां को ही साथ लेकर पैरेन्टस्-टीचर्स मीटिंग ले जाया करता था। मुझे पापा की डांट से बहुत डर लगता था। लेकिन अब नहीं लगता। अब मेरे पापा मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं और मेरी मां मेरी गुरू। •
(लेखक भोपाल मध्य प्रदेश से हैं और उन्होंने हमीदिया कला एवं
वाणिज्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है।)
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