- sangyanmcu
- May 20, 2021
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मां के पास होता हूं तो सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं उनके साथ अब तक के बिताए समय को मैं शब्दों में तो ज्यादा नहीं लिख सकता

अभिषेक दुबे
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मां शब्द ही ऐसा है जिससे ममता उत्पन्न होती है और ये ममता कभी खत्म नहीं होती। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि कुपुत्र हो सकता है लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती है। मां की ममता का आंचल सदैव अपने बेटे के ऊपर बरगद के पेड़ की छांव की तरह होता है, मां से ही तो इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। मैं कितना भी बड़ा हो जाऊं लेकिन मां को तो कुछ दे नहीं सकता लेकिन आज मदर्स डे पर उनके साथ अब तक के बिताए पलों को शब्दों के रूप में पिरोकर बीते लम्हों को याद करूगां। वैसे तो मां के बारे में कितना कुछ भी लिखा जाए वह कम ही होगा, लेकिन वक्त किस तरह से बीतता चला जाता है यह पता ही नहीं चलता कब बचपन बीत गया, स्कूल लाइफ बीत गई और अब इस समय करियर की चिंता सताए जा रही है, बचपन की बातें तो कुछ याद नहीं है लेकिन जब से कुछ जानने लायक हूं तब से अपनी मां के साथ बिताए पलों के कुछ अंश आपको बताता हूं, मैं एक छोटे से कस्बे रीवा जिले के मऊगंज का रहने वाला हूं,जहां से मैंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कक्षा 1 से आठवीं तक पढ़ाई की,1 से आठवीं तक पढ़ाई के दौरान मां ने हमे रोज सुबह स्कूल के लिए तैयार करती, टिफिन बनाती और हमें स्कूल के लिए भेजती फिर घर के कामों में व्यस्त हो जाती थी हमारा अभी संयुक्त परिवार है जहां घर का सारा काम मेरी मां को ही करना होता था क्योंकि मेरी दादी के सिवा घर मे कोई महिला नहीं थी। दोपहर में फिर से खाना तैयार करना होता था क्योंकि स्कूल से लौटने का समय हो जाता था, मेरी मां ने कभी हमें मारा नहीं बल्कि समझाइश ही देती थी इसी तरह देखते-देखते आठवीं तक की शिक्षा पूरी हो गई और 9वीं से पढ़ाई के लिए शहर रीवा में चाचा के पास भेज दिया गया तब से अब तक रीवा में ही हूं, लेकिन अब तक जब भी फीस की जरूरत होती है तो सीधे मां से ही कहता हूं घर जाता हूं तो मेरी मां पॉकेट मनी अलग से दे देती है। पढ़ाई के लिए भी हमेशा मम्मी ने सपोर्ट किया आज भी जब पत्रकारिता का कोर्स करने के लिए मम्मी से पूछा तो उन्होंने सबसे पहले यही पूछा कि कोई भविष्य है इसमें तो मैंने कहा हां तो उन्होंने कोर्स करने के लिए हां कर दिया। मेरी मां गांव की प्रधान भी हैं तो हमे संभालने के साथ साथ गांव के भी समस्याओं का भी निराकरण करती हैं। घर में सबसे बड़ी होने के कारण पूरे परिवार सभी चाचा-चाची सबको साथ में लेकर हमारी आज भी हर समस्या का समाधान करती हैं। शहर में रहने के दौरान जब भी पैसे की जरूरत होती है तो सबसे पहले मम्मी से ही फोन पर बोलता हूं और वो भी दिनभर में तीन-चार बार फोन करके बात करती हैं। हर चीज पूंछती रहती हैं कि खाना खाया? अब क्या कर रहे हो? एक बार सुबह फोन एक बार शाम को फोन रात में फोन कर हाल-चाल पूंछती हैं पूरे घर को बच्चे की तरह ही समझती हैं। जब भी मैं उनके पास होता हूं तो सारी समस्याएं दूर हो जाती है उनके साथ अब तक के बिताए समय को मैं शब्दों में तो ज्यादा नहीं लिख सकता, हां इतना ही कहूंगा कि करुणा की मूर्ति है मेरी मां। •
(लेखक मध्यप्रदेश के रीवा से हैं जिन्होंने टीआरएस कॉलेज रीवा से ग्रेजुएशन किया है।)