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देश का तीसरा और राज्य का पहला सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर बना है पटना



चंदन कुमार . पटना mobile#6388583983


पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों परि और आवरण से मिलकर बना है, जिसमें परि का मतलब है हमारे आसपास अर्थात जो हमारे चारों ओर है, और आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की कुल इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। इसमें जैविक, अजैविक, प्राकृतिक तथा मानव निर्मित वस्तु आते हैं। प्राकृतिक पर्यावरण में पेड़, झाड़ियां, बगीचा, नदी, झील, हवा इत्यादि शामिल हैं। प्राचीन मानव प्रकृति के समीप निवास करते थे, इस कारणवश वह स्वस्थ रहते और ज्यादा दिन तक जीवित रहते थे। परन्तु आज हमारे चारों ओर कृत्रिम (बनावटी) वातावरण हैं, जिसका निर्माण हमनें स्वयं के लिए किया है, - इमारतें, वातानुकूलित कमरें, सड़के, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, वाहन, जानलेवा गैस, धूल इत्यादि।


पर्यावरण में वह सभी प्राकृतिक संसाधन शामिल है जो कई तरीकों से हमारी मदद करते हैं। यह हमें बढ़ने तथा विकसित होने का बेहतर माध्यम देता है। यह हमें वह सब कुछ प्रदान करता है जो इस ग्रह पर जीवन यापन करने हेतु आवश्यक है। हमारा लालन पालन हो, हमारा जीवन बने रहे और कभी नष्ट न हो। तकनीकी आपदा के वजह से दिन-प्रतिदिन हम प्राकृतिक तत्व को अस्वीकार रहे हैं। हमारा पर्यावरण धरती पर स्वस्थ जीवन को अस्तित्व में रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फिर भी हमारा पर्यावरण दिन-प्रतिदिन मानव निर्मित तकनीक तथा आधुनिक युग के आधुनिकरण के वजह से नष्ट होता जा रहा है। इसलिए आज हम पर्यावरण प्रदुषण जैसे सबसे बड़े समस्या का सामना कर रहे हैं।


सामाजिक, शारीरिक, आर्थिक, भावनात्मक तथा बौद्धिक रूप से पर्यावरण प्रदुषण हमारे दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर रहा है।यह किसी समुदाय या शहर की समस्या नहीं है बल्कि दुनिया भर की समस्या है तथा इस समस्या का समाधान किसी एक व्यक्ति के प्रयास करने से नहीं होगा। अगर इसका निवारण पूर्ण तरीके से नहीं किया गया तो एक दिन जीवन का अस्तित्व नहीं रहेगा। शहरीकरण, औद्योगीकरण तथा हमारा प्रकृति के प्रति व्यवहार इन सब कारणों के वजह से पर्यावरण प्रदूषण विश्व की प्रमुख समस्या है तथा इसका समाधान प्रत्येक के निरंतर प्रयास से ही संभव है। समय आ चुका है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय बंद करें और उनका विवेकपूर्ण तरह से उपयोग करें।


आइये अपने गांव के बारे में जाने जहां हम पले और बड़े हुए। हमारे रग-रग में गांव के प्रति अपनापन, दादा-दादी की किस्सा, नाना-नानी का लार-दुलार, मां की लोरी, हमारे चारों ओर हरा-भरा खेत खलिहान, लहलहाते पेड़-पौधें, चहचहाती-फुदकती रंग बिरंगी चिड़िया, माँं गंगा की खलखलती पवित्र धाराएं जो बिल्कुल निश्छल। दोस्तों के साथ गन्ने के खेतों से गन्ना चूसते बाजार तक जाना। ये सब प्राकृतिक रूप हमारे दिलों दिमाग मे समाहीत हैं। चाहे हम दुनिया की किसी भी कोने में चलें जाए ये यादें दुबारा आने वाली नहीं हंै क्योंकि हम अब मॉडर्न बनने चल पड़े हैं। पीपल की छांव के आगे ए.सी. क्या है, नीम के दातून के आगे प्लास्टिक की ब्रश क्या है। हम इतना आगे बढ़ने का सोच रहे हैं कि हर कदम पर्यावरण को छति पहुंचा रहे हैं। चाहे वो ऊंची-ऊंची इमारत ही क्यों न हो, बड़े-बड़े कल-करखाने क्यों न हो, ये सब हमें उस क्षति की ओर अग्रसित कर रहे हैं जिसका अंदाजा और अंजाम दोनों भली-भाती पता है।


पास का शहर पटना है, जिसकी तुलना हम गांव से करें तो गंदगी का अंबार पड़ा है, पेड़-पौधों की भारी कमी है ही। देश का तीसरा और राज्य का पहला सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर बना है पटना। बिहार की राजधानी पटना में वायु की स्थिति पहले से और खराब हो गई है। करीब दो हफ्ते पहले पटना का सूचकांक 158 यानी मॉडरेट था लेकिन बीते बुधवार को यह सूचकांक बढ़कर 286 हो गया। इसके बाद पटना देश में सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में तीसरे नंबर पर आ गया। वहीं, राज्य का पहला ऐसा शहर बन गया, जहां सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है।

बता दें कि पहले स्थान गुजरात का वातवा शहर हैं, जहां वायु प्रदूषण का सूचकांक 321 है और दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है, जिसका सूचकांक 297 है। वहीं दिल्ली का वायु प्रदूषण सूचकांक 171 है। दिल्ली की हवा की गुणवत्ता में पहले से काफी सुधार आया है। दिल्ली में वायु प्रदूषण का सूचकाकं 177 है, वहां गाजियाबाद का 212 है।


पटना की हवा खराब श्रेणी में पहुंच गई है। वहीं दानापुर और ईको पार्क एरिया की हवा बहुत खराब श्रेणी में पहुंच चुकी है। शहर की हवा में धूलकण की मात्र मानक से चार से पांच गुना ज्यादा है। बिहार में गया और मुजफ्फरपुर से भी ज्यादा प्रदूषित शहर पटना बन गया है।


इन शहरों में वायु प्रदूषण इतना इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि यहां सड़कों की सफाई और धुलाई को लेकर नगर निगम उतना सक्रिय नहीं है, जितना होना चाहिए। खुले में भवन और पुल निर्माण की वजह से धूलकणों की मात्रा बढ़ रही है, वहीं निर्माणाधीन जगहों पर पर्यावरणीय नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।


सेंटर फॉर एनवायरमेंट एंड एनर्जी के अध्ययन से यह साफ हो गया है कि पटना में हवा का स्तर अपने खतरनाक स्तर पर कायम है जिससे जन स्वास्थ्य की समस्याएं पैदी हुई हैं। सीड ने पटना शहर की 2017 की वायु अध्ययन के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रियल टाइम मॉनिटरिंग स्टेशनों से प्राप्त आंकडों का विशलेषण किया। अध्ययन से ये भी पता चला कि एक साल में आधे से अधिक दिनों में वायु की स्थिति को बेहद गंभीर श्रेणी में रखा गया है।


बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से बिहार के 24 शहरों में ऑटोमैटिक एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगाने का काम शुरू कर दिया है। अब वैज्ञानिक तरीके वायु प्रदूषण का आंकलन किया जाएगा। पटना में फिलहाल छह जगहों इन स्टेशनों को लगाया गया है। इसके अलावा नगर निगम की ओर से निगम क्षेत्र में अपने स्तर से दस ऑटोमैटिक एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगाने की योजना बनाई गई थी लेकिन इस योजना पर अभी तक काम नहीं शुरू हो पाया है।


सड़कों की सफाई और धुलाई को लेकर नगर निगम की बेरुखी के कारण शहर के वायु प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी होने लगी है। अभी खुले में भवन निर्माण और पुल निर्माण के दौरान धूलकण वायु में फैल रहे हैं। पर्यावरणीय नियमों का निर्माणाधीन स्थल पर पालन नहीं किया जा रहा है। इसके कारण शहर का वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। तापमान में बढ़ोतरी होने के बावजूद पटना की हवा में पीएम 10 और पीएम 2.5 यानी मोटे और महीन धूलकण की मात्रा बढ़ती जा रही है।


नमामि गंगे परियोजना

पटना में नमामि गंगे योजना की शुरुआत साल 2014 में हुई। 20 हजार करोड़ की लागत वाले इस प्रोजेक्ट का मकसद गंगा को उसका पुराना गौरव वापस दिलाना था। वैसे शहर जो गंगा के किनारे बसे हैं, उन शहरों के नालों का पानी बिना कचरा साफ किए गंगा में न मिले। नमामि गंगा प्रोजेक्ट के तहत बिहार में 1259 करोड़ से अधिक की आठ बड़ी मंजूरी दी गई। दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का उद्घाटन हुआ। बेऊर एसटीपी 77.85 करोड़ की लागत से बनकर तैयार हुआ तो वहीं करमलीचक एसटीपी 83 करोड़ से भी ज्यादा की लागत से तैयार हुआ है। राजधानी पटना में पांच एसटीपी नमामि गंगा प्रोजेक्ट के तहत बनने हैं, लेकिन छह साल पूरे होने के बाद भी गंगा के लिए एक भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनकर तैयार नहीं हुआ। गंगा में नालों से निकली गंदगी के कारण प्रदूषित और मैली होती जा रही है। संप हाउस से सीधे पानी गंगा में बहाया जाता है। गंगा को प्रदुषण मुक्त बनाने के लिए आजादी से अबतक करोड़ों रूपए खर्च किए गए हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि इन सबके बावजूद गंगा साफ होने की बजाय दूषित होती गई।



 
 
 
  • sangyanmcu
  • Jun 5, 2021
  • 5 min read

In last 2 years Sehore experienced heavy rainfall with lot of destruction, rainfall in winters, very hot summers, inepted air. There are lot of climatic changes.




Varsha Sharma . Sehore (MP) mobile#7748820054 @varsh3009


When I was 7 to 8 years old, I used to go to a wrestling ground with my dadu. At that time, we prefer walking to our way. That wrestling ground is on the bank of a river called Seewan river. This Seewan river is termed as the main water supply of Sehore. In our way to the ground, there were so many things that were the magic of mother earth like- the trees, small houses with full of greenery, usual weather, chirping birds and animals. But now that Seewan river has become a Seewan drain. Those trees are mostly vanished. The huge buildings has replaced those beautiful houses. There is a phenomenon called global warming took place in my home town. Lots of vehicles causing pollution. As I grew, slowly I’ve experienced lot of changes. Changes including construction, destruction, deforestation, migration and whole of ecological disturbance not only in my home town but also in my state as well as in my country. Sehore is located in the Malwa region of Madhya Pradesh near the capital city of state i.e. Bhopal. Sehore’s environment consists of Rivers, Mountains, lakes, Birds, Animals, Forest, etc.

Rivers, big and small, abound the landscape of Sehore. Narmada, Parvathi, Dudhi, Newaj, Kolar, Papnas, Kulans, Seewan, Lotia and other rivers are spread on landforms of the town. Talking about Sehore, to be more specific, Seewan river was the life line of Sehore District. But now condition is so adverse that the river turned into a runnel. Sehore stands at the foothills of the Vindhya Range in the middle of Malwa Region. Salkanpur is one of them. It has a long and glorious past and this place is worth a visit. But due to global warming and deforestation, this place is also sparsening . Less greenery and lack of wildlife are some of its consequences.


Sidhhapur is the old name of Sehore. According to a rock edict found in Seewan river, Sehore got its name because of the abundance amount of lions in nearby jungles. But now there are no wildlife.


But with all these demerits, there is a plus point of Sehore and that is its cleanliness. According to the Swatchta Sarvekshan Report 2020, Sehore is at top position of most clean city in west zone of Bhopal division. Also, Sehore is famous for its agriculture of Soya bean and wheat (famous as Sehore k sharbati gehu). The agriculture of Sehore makes it more flourish city of the state.In order to get clear picture of Sehore’s condition, I contacted to the Sehore’s chief editor of Haribhoomi- Mr. Pradeep vashisht.


SHORT INTERVIEW WITH THE CITY CHIEF OF HARIBHOOMI PUBLICATION FROM SEHORE-

Q. Sir, you have been the city chief of Sehore for a decent time span now, have you ever experienced any environmental change in older Sehore and new Sehore?

A. Varsha, I’ve seen the worse situation of Sehore’s management. Talking about water management to sewage management there is nothing that has improved. The one and only river i.e. Seewan river is not a river now, it’d become a runnel, which is of no use.


Q. so what was your take on Seewan river's devastating situation? Have you taken any step to prevent the river from such degradation?

A. See, this Seewan river really needs renovation very badly. Because I’ve seen it, from decades, spoiling and degrading. Before Covid i.e. two years ago, I raised my voice for this. Being a journalist, I took help of my edition. I wrote articles throwing light on this situation. I raised a movement too which was joined by few ministers but it ended up muffled.


Q. okay so it was about the river, but what is your point on climate?

A. If humans will lead on with nature, definitely nature will show its equal and opposite effect. Not only in Sehore but in many parts of the country, there are trees visible on roads but if we go inside then we’ll notice that it is vanishing with time. And talking about reforestation, the government has no answer for it. On paper, there is a data of trees plantation but in real life people are just cutting down forest and not replanting the trees. And in such case, climate will drastically change. Right now, very less effect has been seen in Sehore but if the situation will go on like this then surely in near future, Sehore will also be in most adversely affected city of India through global warming and pollution.


Q. what are the climatic changes that Sehore experienced?

A. Since 2018 to 2020, Sehore experienced heavy rainfall with lot of destruction, also rainfall in winters, very hot summers, inepted air. There are lot of climatic changes. But since Sehore lies in the middle of the country, It experiences very less disturbance comparing other cities and states.


Q. There was flood in Sehore, what do you think about Sehore’s management- about its drainage, sewage, garbage and dumping?

A. If I say in one word, the situation is worse. Though some areas are okay, a big chunk of Sehore’s population lives in unhygienic, slum and not so healthy environment. In those rainy days, there was a flood that ruined so many houses and institutions. That flood showed the unpreparedness and zero preparation of disaster management of the district. If you see the dumping ground of Sehore, you’ll see that so many slum people lives there. They, instead of having a good environment, are living in dumping grounds.

So overall the management, in my opinion needs to get improved


Q. In your opinion, who is responsible for all this?

A. See, there is not one sector who is responsible. Starting from average commons to ministers- all are responsible for this effect. All human activities lead the environmental degradation. Water, which is very important for a human, they spoil that water by throwing garbage in it. Trees, that are useful for so many things, we humans are cutting them to build huge buildings and not compensating it by planting more. And ministers, having powers and sources to do something for environment, not taking any relevant step for environment.


So these were the words by Mr. Pradeep Vashisht, Senior Journalist, Haribhoomi Sehore.


With his suggestions and initiatives, we all should take a pledge to plant at least one tree on this very day of Environment Day and try to keep our Environment clean. Let’s join together to reduce pollution, to help others, to be friendly with flora and fauna and maintain harmony in our world.


 
 
 

गलियां बीच काशी है कि काशी बीच गलियां, कि काशी ही गली है कि गलियों की ही काशी है



स्नेहा तिवारी . वाराणसी #8770658477 @snehaTi20827427


वाराणसी शब्द ‘वरुणा' ओर ‘असी' दो नदि वाचक शब्द के योग से बना है। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार और ‘वरुणा' और ‘असी’ नाम की नदियों के बीच में बसने के कारण इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं : बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः मंदिरों का शहर, भारत की धार्मिक राजधानी, भगवान शिव की नगरी, दीपों का शहर, ज्ञान नगरी आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। इस शहर की हर एक चीज अनोखी है। यहां की गालियां, घाट, दुकानें, खानपान, लोग या फिर कह सकते है कि काशी ही अनोखी है। बनारसी पान खाने के बाद बनारस से जाने का मन नहीं करेगा, यहां के पान में जादुई चीजे हैं।


बनारस में कहा जाता है कि जितनी सड़के हैं उससे सौ गुनी अधिक गलियां है यदि आप बनारस की सड़कों को देखेंगे तो अन्याय होगा क्योंकि असली जीवन तो बनारस की गलियों में ही है। बनारस को 2 नामों से पुकारा जाता है पहला पक्का महाल और दूसरा है भीतरी महाल। काशी खंड के अनुसार विश्वनाथ खंड केदार खंड की तरह वर्तमान में दो वर्तमान में दो भागों में बसा है लोगों ने केवल बाहरी रूप ही देखा होगा अगर उसका पक्का रूप देखना है तो वहां की गलियों को देखना होगा जिसे पक्का महाल भी आप कह सकते है।


पक्की सड़के तो वहां अभी ही निर्मित हुई है परंतु वहां की कच्ची सड़के आप की कसरत करवा सकती हैं। और वहां की गलियों से यदि आप कोई पता ढूंढ रहे हो तो आपको ज्योमेट्री की शिक्षा लेनी पड़ेगी क्योंकि वहां की गलियों की जानकारी वहां के रहने वाले लोगों को भी कभी-कभी असमंजस में डाल देती है।


इसलिए किसी जानकार को ही साथ रखें अपने साथ नहीं तो आप उन बनारस की गली में कहीं खो जाएंगे। बनारस में कुल 50 से 55 गलियां है जिनमें से कुछ का नाम कुछ इस प्रकार है विश्वनाथ गली, खोवा गली, कचौड़ी गली, दाल मंडी गली ऐसी ही कुछ 55 गलियां हैं।


स्मार्ट सिटी – काशी

बनारस को देश के स्मार्ट शहरों में शुमार करने की योजनाएं पूरे रफ्तार से चल रही हैं। इस शहर को यूपी का सबसे स्मार्ट शहर बनाने की सरकार की मंशा है। अधिकारियों की मानें तो दिसंबर 2021 तक इन योजनाओं का काम पूरा भी हो जाएगा। 2022 में शहरवासियों को इनकी सौगात मिलेगी। दर्जनभर से ज्यादा संचालित इन योजनाओं पर 1000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। काम को रफ्तार देने और वस्तु स्थिति को समझने के लिए समय-समय पर आला अफसरों की फौज मौके पर पहुंच रही है। वहीं लखनऊ से कार्य योजनाओं की मॉनिटरिंग भी की जा रही है


नमामि गंगे क्लीन इंडिया मिशन

मां गंगा का तट स्वच्छ रहे और श्रद्धालु गंगा स्नान करके घाटों पर गंदगी करके न लौटें। बल्कि गंगा से उनका आत्मीय रिश्ता स्थापित हो और वह स्वच्छता में बढ़चढ़ कर योगदान दें। इसके मद्देनजर नमामि गंगे स्वच्छ भारत मिशन लगातार अभियान चला रहा है। गंगा रहेंगी तभी पृथ्वी पर मानव सहित समस्त जीव सुरक्षित रहेंगे अगर गंगा प्रदूषित होकर नाला के स्वरूप में तब्दील हो जाएंगी तो पृथ्वी से समस्त जीवों का अंत होने लगेगा।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वाराणसी शहर की वायु गुणवत्ता की हालत बेहद खराब है। शहर के 15 प्रमुख स्टेशनों की रिपोर्ट के अनुसार बौलिया का इलाका सबसे अधिक प्रदूषित रहता है। वहीं, शहर का फेफड़ा कहे जाने वाले इलाके बीएचयू, सारनाथ और कैंटोमेंट की भी हालत खराब रही। बौलिया का एयर क्वालिटी इंडेक्स 441 दर्ज किया गया तो कैंट स्टेशन का 427। वहीं, बीएचयू का एक्यूआई 413 और सारनाथ का 374 रहा। बीएचयू के वैज्ञानिक प्रो. बीडी त्रिपाठी ने बताया कि है की पीएम 2.5 और पीएम 10 कणों की मात्रा हवा में बढ़ने के कारण हवा की गुणवत्ता खराब हुई है। कुछ इस तरीके से बनारस में वायु का प्रदूषण ज्यादा है क्योंकि वहां की जनसंख्या ज्यादा है इस वजह से वहां प्रदूषण ज्यादा होता है।


बनारस के मनोहर घाट की कहानी

छठ पर्व के वक्त गंगा नदी का दलदल

बनारस अपने आप में एक अद्भुत जगह है यहां की विशेषता बनारस को अलग बनाती। यहां पर करीब 100 से ज्यादा घाट हैं। सभी घाटों की अपनी अलग-अलग कहानी है। मणिकर्णिका घाट पर हर वक्त लाशें जलती रहती हैं, ऐसे ही अनेक घाट है जो अपनी-अपनी कहानी लिए बैठे है।


मैं बनारस की ही रहने वाली हूं तो मैं गंगा नदी के दलदल को कैसे भूल सकती हूं। 2019 की बात है, छठ वाले दिन जिस दिन शाम को अर्घ दी जाती है उस दिन सभी लोग घाट पर घूमने तो आते ही हैं लेकिन अगर किसी के घर में छठ पूजा नहीं मनाई जाती तो भी लोग गंगा घाट पर घूमने आते हैं। और घाट एक मेले की तरह दिखता है। पैर रखने तक की जगह नहीं होती। मैं भले ही बनारस की हूं लेकिन गंगा घाट को उतना करीब से कभी नहीं देखा था जितना मैंने छठ वाले दिन देखा। सबकी तरह में भी छठ घाट पर गई मुझे अंदाजा भी नहीं था कि इतना खतरनाक दलदल भी होता है पानी से तो मुझे हमेशा से डर रहा है, लेकिन उस दिन के बाद से तो मैं दलदल से भी डरने लगी। वह कुछ ऐसा दलदल था कि मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं पानी में खड़ी हूं या दलदल में क्योंकि गंगा नदी का पानी इतने उफान पर था कि एक दलदल का रूप ले लिया था। वहां का दृश्य कुछ ऐसा हो गया था कि जितने भी बच्चे थे सब के सब उस दलदल से डर रहे थे। सबको डर था कि वह दलदल फूटा और वह उसके अंदर गए। बहुत ही अनोखा दृश्य था वो जिसने मेरी बेचैनी को बढ़ा दिया। मैं वहां से निकलने का रास्ता ढ़ूंढ़ने लगी। मैंने अपने घर के लोगों को मजबूर कर दिया वहां से निकलने के लिए, और उस दिन से आज तक मेरे मन में उस दलदल का भय है। प्राकृतिक और सांस्कृतिक तौर पर बनारस एक बहुत ही अदभुद शहर है।


 
 
 
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