- sangyanmcu
- Jun 5, 2021
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देश का तीसरा और राज्य का पहला सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर बना है पटना

चंदन कुमार . पटना mobile#6388583983
पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों परि और आवरण से मिलकर बना है, जिसमें परि का मतलब है हमारे आसपास अर्थात जो हमारे चारों ओर है, और आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की कुल इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। इसमें जैविक, अजैविक, प्राकृतिक तथा मानव निर्मित वस्तु आते हैं। प्राकृतिक पर्यावरण में पेड़, झाड़ियां, बगीचा, नदी, झील, हवा इत्यादि शामिल हैं। प्राचीन मानव प्रकृति के समीप निवास करते थे, इस कारणवश वह स्वस्थ रहते और ज्यादा दिन तक जीवित रहते थे। परन्तु आज हमारे चारों ओर कृत्रिम (बनावटी) वातावरण हैं, जिसका निर्माण हमनें स्वयं के लिए किया है, - इमारतें, वातानुकूलित कमरें, सड़के, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, वाहन, जानलेवा गैस, धूल इत्यादि।
पर्यावरण में वह सभी प्राकृतिक संसाधन शामिल है जो कई तरीकों से हमारी मदद करते हैं। यह हमें बढ़ने तथा विकसित होने का बेहतर माध्यम देता है। यह हमें वह सब कुछ प्रदान करता है जो इस ग्रह पर जीवन यापन करने हेतु आवश्यक है। हमारा लालन पालन हो, हमारा जीवन बने रहे और कभी नष्ट न हो। तकनीकी आपदा के वजह से दिन-प्रतिदिन हम प्राकृतिक तत्व को अस्वीकार रहे हैं। हमारा पर्यावरण धरती पर स्वस्थ जीवन को अस्तित्व में रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फिर भी हमारा पर्यावरण दिन-प्रतिदिन मानव निर्मित तकनीक तथा आधुनिक युग के आधुनिकरण के वजह से नष्ट होता जा रहा है। इसलिए आज हम पर्यावरण प्रदुषण जैसे सबसे बड़े समस्या का सामना कर रहे हैं।
सामाजिक, शारीरिक, आर्थिक, भावनात्मक तथा बौद्धिक रूप से पर्यावरण प्रदुषण हमारे दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर रहा है।यह किसी समुदाय या शहर की समस्या नहीं है बल्कि दुनिया भर की समस्या है तथा इस समस्या का समाधान किसी एक व्यक्ति के प्रयास करने से नहीं होगा। अगर इसका निवारण पूर्ण तरीके से नहीं किया गया तो एक दिन जीवन का अस्तित्व नहीं रहेगा। शहरीकरण, औद्योगीकरण तथा हमारा प्रकृति के प्रति व्यवहार इन सब कारणों के वजह से पर्यावरण प्रदूषण विश्व की प्रमुख समस्या है तथा इसका समाधान प्रत्येक के निरंतर प्रयास से ही संभव है। समय आ चुका है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय बंद करें और उनका विवेकपूर्ण तरह से उपयोग करें।
आइये अपने गांव के बारे में जाने जहां हम पले और बड़े हुए। हमारे रग-रग में गांव के प्रति अपनापन, दादा-दादी की किस्सा, नाना-नानी का लार-दुलार, मां की लोरी, हमारे चारों ओर हरा-भरा खेत खलिहान, लहलहाते पेड़-पौधें, चहचहाती-फुदकती रंग बिरंगी चिड़िया, माँं गंगा की खलखलती पवित्र धाराएं जो बिल्कुल निश्छल। दोस्तों के साथ गन्ने के खेतों से गन्ना चूसते बाजार तक जाना। ये सब प्राकृतिक रूप हमारे दिलों दिमाग मे समाहीत हैं। चाहे हम दुनिया की किसी भी कोने में चलें जाए ये यादें दुबारा आने वाली नहीं हंै क्योंकि हम अब मॉडर्न बनने चल पड़े हैं। पीपल की छांव के आगे ए.सी. क्या है, नीम के दातून के आगे प्लास्टिक की ब्रश क्या है। हम इतना आगे बढ़ने का सोच रहे हैं कि हर कदम पर्यावरण को छति पहुंचा रहे हैं। चाहे वो ऊंची-ऊंची इमारत ही क्यों न हो, बड़े-बड़े कल-करखाने क्यों न हो, ये सब हमें उस क्षति की ओर अग्रसित कर रहे हैं जिसका अंदाजा और अंजाम दोनों भली-भाती पता है।
पास का शहर पटना है, जिसकी तुलना हम गांव से करें तो गंदगी का अंबार पड़ा है, पेड़-पौधों की भारी कमी है ही। देश का तीसरा और राज्य का पहला सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर बना है पटना। बिहार की राजधानी पटना में वायु की स्थिति पहले से और खराब हो गई है। करीब दो हफ्ते पहले पटना का सूचकांक 158 यानी मॉडरेट था लेकिन बीते बुधवार को यह सूचकांक बढ़कर 286 हो गया। इसके बाद पटना देश में सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में तीसरे नंबर पर आ गया। वहीं, राज्य का पहला ऐसा शहर बन गया, जहां सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है।
बता दें कि पहले स्थान गुजरात का वातवा शहर हैं, जहां वायु प्रदूषण का सूचकांक 321 है और दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है, जिसका सूचकांक 297 है। वहीं दिल्ली का वायु प्रदूषण सूचकांक 171 है। दिल्ली की हवा की गुणवत्ता में पहले से काफी सुधार आया है। दिल्ली में वायु प्रदूषण का सूचकाकं 177 है, वहां गाजियाबाद का 212 है।
पटना की हवा खराब श्रेणी में पहुंच गई है। वहीं दानापुर और ईको पार्क एरिया की हवा बहुत खराब श्रेणी में पहुंच चुकी है। शहर की हवा में धूलकण की मात्र मानक से चार से पांच गुना ज्यादा है। बिहार में गया और मुजफ्फरपुर से भी ज्यादा प्रदूषित शहर पटना बन गया है।
इन शहरों में वायु प्रदूषण इतना इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि यहां सड़कों की सफाई और धुलाई को लेकर नगर निगम उतना सक्रिय नहीं है, जितना होना चाहिए। खुले में भवन और पुल निर्माण की वजह से धूलकणों की मात्रा बढ़ रही है, वहीं निर्माणाधीन जगहों पर पर्यावरणीय नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।
सेंटर फॉर एनवायरमेंट एंड एनर्जी के अध्ययन से यह साफ हो गया है कि पटना में हवा का स्तर अपने खतरनाक स्तर पर कायम है जिससे जन स्वास्थ्य की समस्याएं पैदी हुई हैं। सीड ने पटना शहर की 2017 की वायु अध्ययन के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रियल टाइम मॉनिटरिंग स्टेशनों से प्राप्त आंकडों का विशलेषण किया। अध्ययन से ये भी पता चला कि एक साल में आधे से अधिक दिनों में वायु की स्थिति को बेहद गंभीर श्रेणी में रखा गया है।
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से बिहार के 24 शहरों में ऑटोमैटिक एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगाने का काम शुरू कर दिया है। अब वैज्ञानिक तरीके वायु प्रदूषण का आंकलन किया जाएगा। पटना में फिलहाल छह जगहों इन स्टेशनों को लगाया गया है। इसके अलावा नगर निगम की ओर से निगम क्षेत्र में अपने स्तर से दस ऑटोमैटिक एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगाने की योजना बनाई गई थी लेकिन इस योजना पर अभी तक काम नहीं शुरू हो पाया है।
सड़कों की सफाई और धुलाई को लेकर नगर निगम की बेरुखी के कारण शहर के वायु प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी होने लगी है। अभी खुले में भवन निर्माण और पुल निर्माण के दौरान धूलकण वायु में फैल रहे हैं। पर्यावरणीय नियमों का निर्माणाधीन स्थल पर पालन नहीं किया जा रहा है। इसके कारण शहर का वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। तापमान में बढ़ोतरी होने के बावजूद पटना की हवा में पीएम 10 और पीएम 2.5 यानी मोटे और महीन धूलकण की मात्रा बढ़ती जा रही है।
नमामि गंगे परियोजना
पटना में नमामि गंगे योजना की शुरुआत साल 2014 में हुई। 20 हजार करोड़ की लागत वाले इस प्रोजेक्ट का मकसद गंगा को उसका पुराना गौरव वापस दिलाना था। वैसे शहर जो गंगा के किनारे बसे हैं, उन शहरों के नालों का पानी बिना कचरा साफ किए गंगा में न मिले। नमामि गंगा प्रोजेक्ट के तहत बिहार में 1259 करोड़ से अधिक की आठ बड़ी मंजूरी दी गई। दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का उद्घाटन हुआ। बेऊर एसटीपी 77.85 करोड़ की लागत से बनकर तैयार हुआ तो वहीं करमलीचक एसटीपी 83 करोड़ से भी ज्यादा की लागत से तैयार हुआ है। राजधानी पटना में पांच एसटीपी नमामि गंगा प्रोजेक्ट के तहत बनने हैं, लेकिन छह साल पूरे होने के बाद भी गंगा के लिए एक भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनकर तैयार नहीं हुआ। गंगा में नालों से निकली गंदगी के कारण प्रदूषित और मैली होती जा रही है। संप हाउस से सीधे पानी गंगा में बहाया जाता है। गंगा को प्रदुषण मुक्त बनाने के लिए आजादी से अबतक करोड़ों रूपए खर्च किए गए हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि इन सबके बावजूद गंगा साफ होने की बजाय दूषित होती गई।