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लॉकडाउन से पर्यावरण के साथ देश-प्रदेश की तमाम नदियां साफ हो गईं, लेकिन बांदा से गुजरी केन नदी पर कोई फर्क नहीं पड़ा



अंशिका द्विवेदी . बांदा mobile#6388583983 @Anshika51883840


कोरोना वायरस ने भले ही इंसानों के लिए डर का आलम बना रखा है, लेकिन प्रकृति के लिए यह किसी मरहम और राहत की पुड़िया से कम नहीं है। सड़क पर गाड़ियों की कतारें, धुआं उगलती फैक्ट्रियां और धूल बिखेरते निर्माण हमारे शहरों के विकास की पहचान बन गए थे। बड़े पैमाने पर होने वाली गतिविधियों ने हमारे शहरों की हवा को कितना जहरीला और नदियों को कितना प्रदूषित किया, यह हम सब जानते हैं। इनमें जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तो मुख्य रूप से शामिल हैं। माहौल ऐसा बना है कि जो इलाके पहले वायु प्रदूषण के सबसे बड़े अड्डे थे वे सभी अब धीरे-धीरे व्यापक ग्रीन जोन में तब्दील हो रहे हैं। वहां वनस्पतियों ने अपनी जगह बनाने लगी है इन दिनों कार्बन उत्सर्जन कई तरह के प्रदूषण को अपने आप कम होते देखा जा रहा है, जिससे हवा साफ है। लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का मौका मिल रहा है। चीन की दीवार माउंट एवरेस्ट और हिमालय की चोटियां काफी दूर से साफ-साफ देख पा रहे हैं और वैसे कई बदलाव पर्यावरण पर देखे जा रहे हैं।


अगर आंकड़ों की बात की जाए तो मार्च से अब तक प्रतिदिन होने वाले कार्बन उत्सर्जन में लगभग 17% प्रतिशत तक की कमी आई है। सभी तरह के प्रदूषण में गिरावट हुई है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आई है। इसके अलावा खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी गंगा व यमुना समेत कई नदियों की पानी की गुणवत्ता में व्यापक रूप से सुधार हुआ है, नदियों साफ करने के लिए कई मुहिम चलाई गई थी यहां तक गंगा की सफाई के लिए अलग मंत्रालय का गठन भी किया गया था सबसे बड़ा गंगा नदी सफाई प्रोजेक्ट नमामि गंगे भी चलाया जा रहा है। लेकिन सारे प्रयास असफल साबित हो रहे थे लेकिन लॉकडाउन के चलते जल प्रदूषण में कमी आई है और नदी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। प्रकृति और वन्य जीवन ने खुद को फिर से पुनर्जीवित और स्वच्छ किया है। भारत में हर साल लाखों लोग वायु जलीय या भूमि प्रदूषण के दुष्प्रभाव के कारण मारे जाते हैं। वहीं, अगर बात करें दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की तो यह देश का सबसे प्रदूषित शहर माना जाता रहा है। साल 2018 और 2019 के दौरान पीएम 2.5 का स्तर तीन सौ से ऊपर था। लेकिन, लॉकडाउन के बाद यह स्तर गिरकर 101 पर पहुंच गया। यही हाल देश के अन्य हिस्सों का भी है, जहां वायु प्रदूषण में भारी कमी आई है।


लॉकडाउन से पर्यावरण के साथ देश-प्रदेश की तमाम नदियां साफ हो गईं, लेकिन शहर से गुजरी केन नदी पर कोई फर्क नहीं पड़ा। शहर के नालों का गंदा पानी सीधे नदी में जा रहा है। नतीजतन, केन का पानी काला नजर आ रहा है। कूड़ा-करकट भी तैर रहा है। मध्य प्रदेश की ओर से आई केन नदी जिले के चिल्ला गांव स्थित यमुना में मिलती है। बांदा शहर सहित सैकड़ों गांवों के लिए केन नदी का बड़ा महत्व है। शहर में निम्नी नाला समेत कई बड़े नालों का गंदा पानी सीधे नदी में पहुंच रहा प्रदूषण का आलम यह है कि रेल और सड़क पुल के पास केन नदी का पानी काला नजर आने लगा है। कचरा फेंकने की प्रवृत्ति पर भी लगाम नहीं लगी। लोग बेहिचक नदी में कूड़ा फेंक रहे हैं। प्रदूषण के चलते नदी का पानी सीधे पीने योग्य नहीं है। केन पुल के नजदीक दो इंटेकवेल हैं जिनसे बांदा शहर को जलापूर्ति की जाती है।


मुझे लगता है पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए निजी और सरकारी कंपनियों को उत्पादन के लिए इको फ्रेंडली तकनीकी को अपनाना चाहिए। साथ ही साथ सरकारों को पर्यावरणीय चुनौती को ध्यान में रखते हुए विकासात्मक नीतियां बनाने की भी जरूरत है। यह भी एक जरूरी कदम है हम विश्व स्तर पर और सामूहिक रूप से कार्य करने की दिशा में कदम बढ़ाए।


 
 
 

प्रयागराज के संगम तट पर मनुष्य ही क्या, हजारों की संख्या में आने वाले साइबेरियन पक्षियों भी मानों गंगा की गोद में चले आते हैं



सतीश पाण्डेय . प्रयागराज mobile#8173023450 @satish3398


जीवन पर्यावरण से ही संभव है। समस्त मनुष्य, जीव- जंतु, प्राकृतिक, वनस्पतियों, पेड़- पौधे, जलवायु, मौसम सब पर्यावरण के अंतर्गत ही निहित है। पर्यावरण न सिर्फ जलवायु में संतुलन बनाए रखने का काम करता है, बल्कि जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँं उपलब्ध करवाता है। मानव और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। अगर हमारी जलवायु में थोड़ा सा भी परिवर्तन होता है तो इसका सीधा असर हमारे परिवेश के साथ-साथ शरीर पर दिखने लगता है। अगर ठंड ज्यादा पड़ती है तो हमें सर्दी हो जाती है। लेकिन अगर गर्मी ज्यादा पड़ती है तो हम सहन नहीं कर पाते हैं।


पर्यावरण वह प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी पर बढ़ने, पोषण और नष्ट करने में सहायता करती है। प्राकृतिक पर्यावरण पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में एक महान भूमिका निभाता है और यह मनुष्य, जानवरों और अन्य जीवित चीजों को विकसित करने में मदद करता है। मनुष्य अपनी कुछ बुरी आदतों और गतिविधियों से अपने पर्यावरण को प्रभावित कर रहे हैं।


प्रयागराज के संगम तट पर लगने वाले माघ मेले में देश-विदेश से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के साथ, सात समन्दर पार कर साइबेरियन पक्षियों के समूह भी संगम तट पर पहुंच जाते हैं। संगम तट पर हजारों की संख्या में आने वाले साइबेरियन पक्षियों से जहां संगम का प्राकृतिक सौन्दर्य और भी निखर जाता है, तो वहीं संगम पर आने वाले श्रद्धालुओं के साथ ही देशी-विदेशी पर्यटक भी इन प्रवासी पक्षियों के कलरव को देखकर आनन्द की अनुभूति करते हैं।


लेकिन पिछले कुछ वर्षों से प्रदूषण की मार के चलते इन विदेशी मेहमानों की तादाद बेहद कम हो गई है। इसे लेकर पर्यावरण के साथ पर्यटकों में भी काफी निराशा देखने को मिला है। ग्रामीण क्षेत्रों में बाग-बगीचे, पेड़-पौधे, नदी-तालाब अधिक देखने को मिलते हैं, जिससे गांव का पर्यावरण शुद्ध व साफ सुथरा रहता है। लेकिन कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति तालाबों पर कुछ लोगों द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर भवन निर्माण जैसे अतिक्रमण फैलाते हैं, तालाब के जल को दूषित करते हैं।


ऐसा ही हाल कुछ हमारे गांव में तालाब पर अतिक्रमण से जुड़ा था। लेकिन गांव के ही कुछ लोगों द्वारा तालाब सफाई अभियान चलाया गया जिससे अब तालाबों का सौंदर्यीकरण किया गया। तालाब के चारों तरफ पेड़-पौधे लगाए गए। बैठने के लिए चबूतरे का निर्माण किया गया है। अब गांव के सभी लोग सुबह-शाम तालाब पर टहलते हैं और ताजी हवा का आनंद लेते हैं। हमारे गांव से कुछ दूर पहाड़ों के बीच में एक बड़ा सा बांध का निर्माण कराया गया है जिसमें वर्षा का पानी इकट्ठा होता है फिर उसी पानी से कृषि कार्य किए जाते हैं व पशु-पक्षी भी अपनी प्यास बुझाते हैं।


वर्षा का जल इकट्ठा होने से आसपास के क्षेत्र में पानी का स्तर काफी ऊपर रहता है। पानी की परेशानी नहीं होती। उसी बांध के पास एक झरना है जिसे सरकार द्वारा पर्यटक स्थल घोषित किया गया है। झरने में नहाने और पिकनिक मनाने के लिए लोग अपने पूरे परिवार के साथ आते हैं और प्रकृति का आनंद उठाते है।

संसार की रचना कुछ नियमों के आधार पर हुई है। उन नियमों को तोड़ने वाले आप या फिर हम कोई नही होते। और जो नियम तोड़ता है वो समस्त विश्व को ले डूबता है। नियम तोड़ने वाले को इसका भुगतान करना पड़ता है। ये बात हमें ध्यान रखनी चाहिए। पर्यावरण भी अब हमसे प्रत्यक्ष रूप से बोल रहा होगा कि इस प्रकार की गतिविधियां कम करो। पर्यावरण की ना सुनने की कीमत हमें ना चुकानी पड़े इसका प्रयास करे। स्वयं जागरूक रहे व दूसरों को भी जागरूक करे। जागरुकता से जब पर्यावरण बचाया जा सकता है तो इससे कभी पीछे न हटें। मुरझाए पर्यावरण को मुस्कुराने की अदा दें। स्वयं मुस्कुराए साथ मंे पर्यावरण को भी मुस्कुराने का वादा दे।


 
 
 
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